अधर मे लटका हजारों शिक्षकों का भविष्य, ACS S सिद्धार्थ के डेडलाइन भी हुई फेल, फ़ाइल की रफ्तार हुई काफ़ी सुस्त
उन्होंने दावा किया है कि इस डिजिटल प्रक्रिया में किसी भी प्रकार की मानवीय हस्तक्षेप या हेराफेरी की संभावना नहीं है, क्योंकि कोडिंग इस तरह से की गई है कि ट्रांसफर करने वाले अधिकारी भी यह नहीं जानते कि कौन-सा शिक्षक कहां जा रहा है।हालांकि, जमीनी हकीकत कुछ और ही कहानी बयां कर रही है।
9 जून तक की रिपोर्ट के अनुसार, पूरे राज्य में कुल शिक्षकों की संख्या काफी अधिक होने के बावजूद, केवल 42,700 शिक्षकों को ही स्कूल आवंटित किए जा सके हैं। इसका मतलब है कि अब तक केवल 38.49% शिक्षक ही इस डिजिटल प्रक्रिया से गुजरे हैं। 20 जून की समय-सीमा को देखते हुए, यह रफ्तार काफी चिंताजनक है।
मुजफ्फरपुर के साथ-साथ, दरभंगा (20.60%) और पश्चिम चंपारण (19.74%) भी इस प्रक्रिया में सबसे निचले पायदान पर हैं, जो इन जिलों में प्रक्रिया की धीमी गति को दर्शाता है।
कुछ जिलों ने हालांकि इस चुनौती को बखूबी पार किया है और ‘ग्रीन ज़ोन’ में अपनी जगह बनाई है। इन 7 जिलों ने ट्रांसफर-पोस्टिंग के लक्ष्य को लगभग पूरा कर लिया है:
जमुई – 100%
खगड़िया – 99.44%
शिवहर – 97.01%
शेखपुरा – 95.85%
किशनगंज – 83.19%
अरवल – 80.20%
जहानाबाद – 77.54%
सूत्रों की मानें तो इस धीमी रफ्तार के पीछे कई कारण हो सकते हैं:अधिकारियों की रुचि की कमी: कई जिलों में शिक्षा विभाग के अधिकारियों की उदासीनता मुख्य कारण मानी जा रही है।तकनीकी ज्ञान का अभाव: कई शिक्षकों को डिजिटल प्रक्रिया की पर्याप्त जानकारी नहीं है, जिससे उन्हें आवेदन भरने में दिक्कत आ रही है।तकनीकी समस्याएं और डेटा एंट्री में देरी: कुछ स्थानों पर ई-शिक्षा कोष ऐप में तकनीकी खराबी और डेटा एंट्री में हो रही देरी के कारण भी प्रक्रिया बाधित हो रही है।
डॉ. एस. सिद्धार्थ ने एक बार फिर दोहराया है कि “20 जून तक हर हाल में ट्रांसफर प्रक्रिया पूरी होनी चाहिए। अब कोई बहाना नहीं चलेगा।”
शिक्षकों के लिए यह ट्रांसफर प्रक्रिया जितनी आवश्यक है, उतनी ही इसकी पारदर्शिता और समयबद्धता भी महत्वपूर्ण है। लेकिन अगर मौजूदा रफ्तार ऐसे ही बनी रही, तो 20 जून की डेडलाइन केवल एक तारीख बनकर रह जाएगी, और हजारों शिक्षक अभी भी अपने स्कूल आवंटन का इंतजार करते रह जाएंगे।