शिक्षा विभाग में बड़ा घूसकांड, DPO और शिक्षक रिश्वत लेते रंगे हाथ गिरफ्तार
बिहार में भ्रष्टाचार के मामले लगातार सामने आ रहे हैं। ताजा मामला नालंदा जिला शिक्षा कार्यालय से जुड़ा है, जहां विशेष निगरानी इकाई (SVU) ने बड़ी कार्रवाई करते हुए जिला कार्यक्रम पदाधिकारी (माध्यमिक शिक्षा) अनिल कुमार को ₹20,000 की रिश्वत लेते हुए रंगे हाथ गिरफ्तार किया है।
उनके साथ अस्थावां प्रखंड के तरवन्नी प्राथमिक विद्यालय में कार्यरत शिक्षक संजय कुमार और एक अन्य शिक्षक संजय भारती को भी गिरफ्तार किया गया है।
इन सभी पर आरोप है कि हिलसा (नालंदा) स्थित महंथ विद्यानंद कॉलेज की प्रबंध समिति के गठन के एवज में घूस की मांग की गई थी। निगरानी टीम ने सभी को हिलसा बाजार स्थित रामबाबू हाई स्कूल के पास से गिरफ्तार किया। महंथ विद्यानंद कॉलेज के प्रबंध समिति सदस्य एवं रोकड़पाल नरेंद्र कुमार ने SVU में शिकायत दर्ज कराई थी कि डीपीओ अनिल कुमार, कॉलेज के पुराने सदस्यों को नई कमेटी में शामिल करने के लिए ₹20,000 की रिश्वत की मांग कर रहे हैं।
शिकायत की पुष्टि के लिए SVU ने गोपनीय सत्यापन किया, जिसमें आरोप सही पाए गए। सत्यापन के दौरान डीपीओ ने स्पष्ट कहा कि “जब तक 20 हजार रुपये नहीं देंगे, नई कमेटी नहीं बनेगी।”
डीएसपी एके झा के नेतृत्व में निगरानी दल ने जाल बिछाया। सोमवार को कॉलेज में समिति गठित होनी थी, उसी समय SVU की टीम कॉलेज के आसपास पहले से निगरानी कर रही थी। जैसे ही डीपीओ ने रिश्वत की राशि स्वीकार की, टीम ने तत्काल हिलसा बाजार में छापा मारकर उन्हें रंगेहाथ दबोच लिया। गिरफ्तारी के वक्त डीपीओ और शिक्षक भागने की कोशिश कर रहे थे लेकिन टीम ने उन्हें पीछा कर पकड़ लिया।
इस पूरी कार्रवाई में स्पेशल विजिलेंस यूनिट की टीम में डीएसपी राजकुमार सिंह डीएसपी अशोक झा, इंस्पेक्टर अविनाश कुमार झा, सब-इंस्पेक्टर त्रिपुरारी प्रसाद, सोनू कुमार, रंजीत कुमार अधिकारी शामिल थे। गिरफ्तार किए गए अधिकारियों को कागजी कार्रवाई के बाद पटना स्थित निगरानी मुख्यालय ले जाया गया।
अब सभी आरोपियों के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत मामला दर्ज कर आगे की कानूनी कार्रवाई की जा रही है। संभावना है कि इस मामले से जुड़े अन्य कर्मचारियों की भूमिका की भी जांच की जाएगी। शिक्षा विभाग में भ्रष्टाचार का यह ताजा मामला उस समय सामने आया है जब सरकार पारदर्शिता और जवाबदेही पर जोर दे रही है। यह मामला यह दर्शाता है कि शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र में घूसखोरी किस स्तर तक फैली हुई है, और निगरानी तंत्र कितना सक्रिय है।