शिक्षकों के लिए खुशखबरी , के के पाठक की हो गई छुट्टी , मुख्यमंत्री ने दी NOC ,
शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक (KK Pathak) को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाने के लिए बिहार सरकार ने एनओसी दे दिया है और विरमित भी किए गए. बता दें कि केके पाठक ने सरकार से केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाने के लिए एनओसी मांगी थी जिसे राज्य सरकार ने मान लिया.
शिक्षा विभाग के एसीएस केके पाठक (KK Pathak) की छुट्टी हो गई। केके पाठक को केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति पर भेजने का सरकार ने फैसला लिया है। आईएएस केके पाठक (IAS KK Pathak) ने खुद केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाने को लेकर सरकार को चिट्ठी लिखी थी, जिसको सरकार ने हरी झंडी दे दी है।
केके पाठक जून 2023 में शिक्षा विभाग के एसीएस के रूप में पदभार संभाला था। उनकी कार्यशैली ने राज्यपाल, तत्कालीन शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर और उनकी पार्टी आरजेडी के विधायक समेत कई लोग नाराज चल रहे थे। सत्ता से आरजेडी के हटने के बाद भी केके पाठक लगातार शिक्षा व्यवस्था में सुधार करने को लेकर एक्शन पर एक्शन लेते रहे। उनके एक्शन के कारण राजभवन से टकराव भी होता रहा।
हाल ही में उच्च शिक्षा विभाग ने राज्य के सभी विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के वेतन पर केके पाठक ने रोक लगा दी। इसको लेकर शिक्षा विभाग के सचिव वैद्यनाथ यादव ने चिट्ठी तक जारी कर 28 फरवरी को शिक्षा विभाग की बैठक में शामिल नहीं होने वाले विश्वविद्यालयों के अधिकारियों से जवाब मांगा है। साथ ही उन सभी के वेतन पर रोक लगा दी है।
ऐसे अधिकारियों की लिस्ट काफी लंबी है। किसी भी विश्वविद्यालय के कुलपति मीटिंग में नहीं शामिल हुए थे लिहाजा उनका वेतन रोक दिया गया है। इसके अलावा दो यूनिवर्सिटी के एग्जामिनेशन कंट्रोलर और एक यूनिवर्सिटी के कुलसचिव को छोड़कर सभी का वेतन भी रोक दिया गया है।
सिर्फ वेतन ही नहीं रोका गया। शिक्षा विभाग ने सवाल भी पूछा कि उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों ना हो। रिजल्ट जारी करने में देर हो रही है। इसपरIPCकी अलग-अलग धाराओं के तहत कार्रवाई क्यों ना हो। दो दिन के अंदर जवाब मांगा गया है। साथ ही विश्वविद्यालयों के खाते से लेन-देन पर रोक लगा दी गई है।
हालांकि पिछले साल अगस्त में केके पाठक ने बीआरए बिहार यूनिवर्सिटी मुजफ्फरपुर के कुलपति और प्रति कुलपति के वेतन पर रोक लगा दी थी। राजभवन ने आदेश वापस लेने को कहा था लेकिन शिक्षा विभाग ने बिहार राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम-1976 का हवाला देते हुए पूछा था कि इस अधिनियम की किस धारा में विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता परिभाषित है और लिखा है कि विश्वविद्यालय स्वायत्त संस्थान हैं। शिक्षा विभाग के पत्र में कहा गया था कि राज्य सरकार सालाना विश्वविद्यालयों को 4000 करोड़ रुपये देती है लिहाजा शिक्षा विभाग को विश्वविद्यालयों को उनकी जिम्मेदारी बताने, पूछने का पूर्ण अधिकार है कि वे इस राशि का कहां और कैसे इस्तेमाल कर रहे हैं।