7.82 करोड़ रूपये राजयभर के सरकारी स्कूलों मे खरीदे गए बेंव डेस्क मे हुई बड़ी घोटाला, इसकी शुरू हुई जाँच, कई अधिकारीयों पर विभाग कर सकती है करवाई
बिहार के शिवहर जिले में सरकारी स्कूलों में 07 करोड़ 82 लाख, 08 हजार 214 रुपये खर्च कर 14 हजार 439 बेंच-डेस्क की खरीदारी मामले में सरकार के निर्देश पर जांच शुरू कर दी गई है।
प्रारंभिक जांच में मामला सामने आया है कि संवेदकों द्वारा स्कूलों को जरूरत से अधिक डेस्क-बेंच की आपूर्ति करा दी गई।
संवेदकों द्वारा इससे संबंधित शपथ पत्र भी नहीं दिया गया। डेस्क-बेंच की गुणवत्ता पर उठते सवालों के बीच सरकार ने इसकी जांच के आदेश दिए थे।
इसके आलोक में शिक्षा विभाग के कनीय अभियंता अपने -अपने प्रखंड में की गई डेस्क-बेंच की आपूर्ति की जांच में जुटे है। रोजाना अलग-अलग स्कूलों में इसकी जांच चल रही है।
शिक्षा विभाग ने बच्चों को जमीन पर बैठ कर पढ़ाई करने की पुरानी व्यवस्था को खत्म कर डेस्क-बेंच की नई व्यवस्था दी है। इस मद में 7.82 करोड़ रुपये भी खर्च किए गए है। एक डेस्क-बेंच पर पांच हजार की राशि खर्च की गई है।
हालांकि, बेंच-डेस्क की गुणवत्ता और कीमत पर अब सवाल उठने लगे। सामाजिक कार्यकर्ता मुकुंद प्रकाश मिश्रा ने जिलाधिकारी से डेस्क-बेंच क्रय की पूरी प्रक्रिया की जांच कराने की मांग की थी।
शिक्षा विभाग के अनुसार जिले में विद्यालय और संवेदक स्तर पर डेस्क -बेंच की खरीदारी की गई है। विद्यालय के माध्यम से 96 मध्य विद्यालयों में 2.40 करोड़ की राशि से 4800 बेंच-डेस्क की खरीदारी की गई है।
वहीं, 44 उच्च तथा उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों में 1.25 करोड़ की लागत से 2050 बेंच- डेस्क की खरीदारी की गई हैं।
संबंधित विद्यालयों को सवा दो से ढाई लाख रुपये आवंटित किए गए
इस मद में संबंधित विद्यालयों को सवा दो से ढाई लाख रुपये आवंटित किए गए थे। जबकि 30 अलग-अलग एजेंसी के माध्यम में 95 प्राथमिक, मध्य, माध्यमिक व उच्च माध्यमिक विद्यालयों में तीन करोड़ 65 लाख 78 हजार 214 रुपये की राशि से खर्च कर सात हजार 589 बेंच-डेस्क की खरीदारी की गई।
बेंच डेस्क प्रति सेट के लिए अधिकतम पांच हजार रुपये निर्धारित किए गए थे। इसी राशि में डेस्क-बेंच की रंगाई, परिवहन खर्च एवं जीएसटी भी शामिल है।
वहीं, विभाग ने शीशम के फ्रेम में आम के लकड़ी की पटरी से बेंच-डेस्क तैयार कर आपूर्ति कराने की बात कही है। हालांकि आपूर्ति में मानक का पालन नहीं किया गया हैं।
यही वजह है कि बेंच-डेस्क की गुणवत्ता पर सवाल उठ रहा है। बताया जा रहा हैं कि कई एजेंसी के नाम पर कागजी खानापूर्ति कर भुगतान किया गया।