सुप्रीम कोर्ट का बड़ा आदेश अब स्कूलों की जांच जीविका दीदी टोला सेवक लेखपाल व लिपिक आदि नहीं कर सकेंगे
जीविका डॉन अब स्कूल की जांच नहीं कर पाएगी दरअसल वर्ष 2016 में शिक्षा विभाग के तत्कालीन प्रधान सचिव और ग्रामीण विकास विभाग के सचिव ने संयुक्त रूप से आदेश जारी कर स्कूलों की जांच में जीव जीविका डॉन को लगा दिया था और 75% से कम छात्र उपस्थित पाए जाने पर विद्यालय के प्रधानाध्यापक और शिक्षकों के वेतन से 50% तक कटौती करने का आदेश दिया था
इसे आदेश को परिवर्तनकारी प्रारंभिक शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष बंशीधर बृजवासी ने उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी श्री बृजवासी ने बताया कि इसकी सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने 2 अगस्त 2018 को आदेश पारित करते हुए उसे निरस्त कर दिया और की कहा कि बच्चों की उपस्थिति के लिए शिक्षक जिम्मेदार नहीं है और जीविका की विधियां गैर सरकारी संगठन को सदस्य मात्र हैं जिन्हें स्कूलों के निरीक्षण का कोई अधिकार नहीं है श्री बृजवासी ने बताया कि उसके बाद उच्च न्यायालय के फैसले को सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई सुप्रीम कोर्ट में सरकार द्वारा दायर एसएलपी को शुक्रवार को खरीद कर दिया गया
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा है कि सरकारी स्कूलों व शिक्षकों की जांच जीविका दीदी या टोला सेवक लेखपाल या कोई सरकारी लिपिक नहीं कर सकते हैं बल्कि विद्यालय और शिक्षकों की जांच अधिकारी ही कर सकते हैं साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि बच्चों की उपस्थित सब प्रतिशत कारण शिक्षकों की जिम्मेदारी नहीं है