मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गाँव मे शिक्षा व्यवस्था है बद से बदतर, एक शिक्षक के सहारे पूरा स्कुल, शिक्षक ने छुट्टी के लिए दिया अप्लीकेशन तो खुला असलियत की पोल
सरमेरा प्रखंड के गोवा काजीचक प्राथमिक विद्यालय में पिछले दो वर्षों से केवल एक शिक्षक अरविंद प्रसाद यादव – 144 बच्चों की शिक्षा, देखभाल और प्रशासनिक जिम्मेदारियों का भार अकेले ढो रहे हैं।
अरविंद यादव वर्ष 2003 में शिक्षा मित्र के रूप में नियुक्त हुए और 2005 से इस विद्यालय में सेवाएं दे रहे हैं। समय के साथ स्कूल में कार्यरत बाकी शिक्षक सेवानिवृत्त हो गए, लेकिन उनकी जगह कोई नई नियुक्ति नहीं हुई। आज स्थिति यह है कि अरविंद यादव ही प्रधानाध्यापक, शिक्षक, कार्यालय सहायक, खेल प्रशिक्षक और कभी-कभी रसोइया तक की भूमिका निभा रहे हैं।विद्यालय में पहली से लेकर पाँचवीं कक्षा तक के बच्चे एक ही कक्ष में बैठकर पढ़ते हैं, क्योंकि कक्षाओं और शिक्षकों की संख्या सीमित है। सुविधाएं लगभग नहीं के बराबर हैं – न बेंच-डेस्क, न स्मार्ट क्लास, न खेल सामग्री – बच्चे आज भी बोरी या फर्श पर बैठकर पढ़ाई करते हैं।
छात्रा शबनम कुमारी कहती है, “सर हमें अच्छे से पढ़ाते हैं। समय पर खाना, किताबें भी मिलती हैं, लेकिन अकेले सर कितना कुछ करेंगे?” इस वाक्य में बच्चों का भरोसा भी झलकता है और बेबसी भी।
हाल ही में जब अरविंद यादव ने एक दिन की छुट्टी के लिए आवेदन दिया, तो विद्यालय की वास्तविक स्थिति सामने आई। उस दिन स्कूल लगभग ठप हो गया, जिससे विभाग को स्थिति की गंभीरता का अंदाजा हुआ और तत्काल पास के स्कूल से एक शिक्षक की अस्थायी प्रतिनियुक्ति की गई।
जिला शिक्षा पदाधिकारी राज कुमार ने बताया कि उन्हें इस स्थिति की जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स से मिली है। हालांकि उन्होंने अस्थायी तौर पर एक शिक्षक की नियुक्ति कर दी है, लेकिन स्थायी समाधान की दिशा में अभी कोई स्पष्ट योजना सामने नहीं आई है।
यह कहानी एक व्यक्ति की लगन, समर्पण और सेवा भावना की मिसाल है, लेकिन साथ ही शिक्षा तंत्र की कमजोरियों को भी उजागर करती है। आखिर एक ही शिक्षक के भरोसे 144 बच्चों का भविष्य कैसे सुरक्षित रहेगा? क्या ये बच्चे भी उसी ज्ञान के अधिकारी नहीं हैं, जिसकी मिसाल नालंदा की ऐतिहासिकता देती है?गोवा काजीचक विद्यालय की कहानी सिर्फ एक गांव या एक स्कूल की नहीं, बल्कि यह देश की उन अनगिनत शिक्षण संस्थाओं की कहानी है, जहां संसाधनों की कमी के बावजूद कुछ समर्पित शिक्षक शिक्षा का दीप जलाए हुए हैं। सरकार और प्रशासन को चाहिए कि ऐसे शिक्षकों को सम्मानित भी करे और ऐसे स्कूलों में संसाधन व स्टाफ की उपलब्धता सुनिश्चित करे। क्योंकि अगर एक शिक्षक अकेले 144 बच्चों की उम्मीद बन सकता है, तो सोचिए कि पूरी टीम मिलकर क्या कर सकती है।